हिमाचल प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह भरोसा दिलाया है कि हाल ही में रावी और ब्यास नदियों में बहते हुए दिखाई दिए हिमालयी पेड़ों के तने अवैध कटाई का परिणाम नहीं हैं, बल्कि वे प्राकृतिक आपदाओं से गिरे या सड़े हुए पेड़ हैं।
राज्य सरकार ने कहा कि नदी किनारों पर इकट्ठी हुई लकड़ियाँ “प्राकृतिक रूप से गिरे हुए या सड़ चुके पेड़ों तथा बचाव योग्य अवशेषों (salvage debris)” का हिस्सा हैं। सरकार ने स्पष्ट किया कि इन लकड़ियों का उत्पत्ति स्रोत मानव गतिविधियाँ नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न प्राकृतिक आपदाएँ हैं, जिनमें तेज़ वर्षा, भूस्खलन और बाढ़ शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में चिंता जताई थी जब सोशल मीडिया पर उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पंजाब में बाढ़ और भूस्खलन के दौरान नदियों में बड़ी संख्या में बहते लकड़ी के लट्ठों के वीडियो सामने आए थे। न्यायालय ने यह आशंका जताई थी कि यह दृश्य कहीं बड़े पैमाने पर अवैध वनों की कटाई का संकेत तो नहीं हैं।
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इसके जवाब में हिमाचल सरकार ने कहा कि इन लकड़ियों की उत्पत्ति प्राकृतिक कारणों से हुई है, और वन विभाग द्वारा नियमित रूप से इस प्रकार के बहाव की निगरानी की जाती है। राज्य ने अदालत को आश्वस्त किया कि वन क्षेत्र की सुरक्षा और अवैध कटाई पर रोक लगाने के लिए सख्त निगरानी तंत्र लागू है।
सरकार ने यह भी कहा कि इस स्थिति से निपटने के लिए नदियों के किनारों पर सफाई और पुनर्वनीकरण अभियान तेज़ी से चलाए जा रहे हैं।
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