कोलकाता की दुर्गा पूजा, जो अपने भव्य पंडालों और कलात्मक प्रस्तुतियों के लिए मशहूर है, इस बार एक अनूठा और मार्मिक संदेश लेकर आई है। कलाकार प्रदीप दास ने अपने पंडाल को ग़ाज़ा पट्टी की कविताओं और बंगाल अकाल से जुड़ी बंगाली कविताओं के माध्यम से सजाया है। उन्होंने hunger (भूख) और death (मृत्यु) की गूंज को दोनों संदर्भों में जोड़ते हुए एक गहरा कलात्मक संवाद रचा है।
दास का कहना है कि ग़ाज़ा और बंगाल अकाल, भले ही भौगोलिक और ऐतिहासिक रूप से एक-दूसरे से हजारों किलोमीटर और कई दशकों की दूरी पर हों, लेकिन उनके दर्द और त्रासदी की अनुभूति एक समान है। ग़ाज़ा की कविताएं युद्ध और हिंसा में घिरी ज़िंदगी को बयां करती हैं, जबकि बंगाली कविताएं 1943 के अकाल के समय लोगों की भूख, बेबसी और मौत की दास्तान कहती हैं।
इस पंडाल में दीवारों पर कविताओं और चित्रों का मेल दिखता है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है कि इंसानी पीड़ा सार्वभौमिक है और समय तथा स्थान से परे जाकर भी हमें जोड़ती है। पूजा में आने वाले लोग इस कलात्मक प्रस्तुति के जरिए केवल देवी दर्शन ही नहीं कर रहे, बल्कि मानवता की साझा पीड़ा और संवेदनाओं का अनुभव भी कर रहे हैं।
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यह पहल दुर्गा पूजा के उस स्वरूप को रेखांकित करती है, जिसमें केवल धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि सामाजिक और मानवीय संदेश भी बुने जाते हैं। पंडाल इस वर्ष न केवल कला और संस्कृति का केंद्र बना है, बल्कि वैश्विक संवेदना और एकजुटता का भी प्रतीक है।
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