कोलकाता में गंगा घाटों के संरक्षण को लेकर विशेषज्ञों, शिक्षाविदों और नागरिकों ने गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि तेजी से हो रहे शहरीकरण, प्रदूषण और कटाव के कारण गंगा नदी तट, जो कोलकाता की पहचान और भारत की सामूहिक स्मृति का प्रतीक है, स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो रहा है।
जादवपुर विश्वविद्यालय में आयोजित एक संगोष्ठी “द रिवरबैंक सिटी: कोलकाता एंड इट्स घाटस्केप” में गुरुवार को वक्ताओं ने कहा कि गंगा घाट केवल धार्मिक या सांस्कृतिक स्थल नहीं हैं, बल्कि वे भारत की आध्यात्मिक और सामुदायिक विरासत के जीवंत प्रतीक हैं।
विशेषज्ञों ने कहा कि कोलकाता के घाट सदियों से शहर की सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान का हिस्सा रहे हैं। यहां न केवल धार्मिक अनुष्ठान होते हैं बल्कि यह स्थल लोगों की सांझी भावनाओं और परंपराओं का केंद्र भी हैं।
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उन्होंने चेतावनी दी कि अनियंत्रित निर्माण गतिविधियां, औद्योगिक अपशिष्ट और नदी तट पर अतिक्रमण से घाटों की संरचना और पारिस्थितिक संतुलन पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। इससे न केवल गंगा की जैव विविधता प्रभावित हो रही है, बल्कि स्थानीय समुदायों की जीवनशैली और सांस्कृतिक परंपराओं पर भी असर पड़ रहा है।
वक्ताओं ने सरकार और स्थानीय प्रशासन से आग्रह किया कि वे गंगा घाटों के संरक्षण के लिए सुनियोजित नीति, नियमित सफाई अभियान और पारिस्थितिक पुनर्स्थापन कार्यक्रम शुरू करें।
संगोष्ठी में यह भी कहा गया कि गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि भारत की संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है, और इसका संरक्षण पूरे राष्ट्र की जिम्मेदारी है।
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