संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में भारत द्वारा मतदान से अनुपस्थित रहने (Abstention) की दर वर्ष 2024 में इतिहास में अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है। इस रुझान को लेकर कई कूटनीतिक विश्लेषक इसे भारत जैसे उभरते और मध्यम शक्ति वाले देशों के लिए रणनीतिक संतुलन का एक उपयोगी उपकरण मानते हैं।
भारत के पूर्व स्थायी प्रतिनिधि टी.एस. तिरुमूर्ति के अनुसार, मतदान से अनुपस्थित रहना भारत को न तो पूरी तरह से किसी पक्ष में खड़ा करता है और न ही विरोध में — यह एक स्वतंत्र और संतुलित रुख अपनाने की अनुमति देता है। तिरुमूर्ति ने कहा, “अनुपस्थिति उभरती शक्तियों को यह अवसर देती है कि वे किसी अंतरराष्ट्रीय विवाद पर अपनी स्वतंत्र सोच बनाए रखें, बजाय इसके कि वे महाशक्तियों के मतों की लहर में बह जाएं।”
विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत की यह रणनीति उसके 'अग्रेसिव न्यूट्रैलिटी' (आक्रामक तटस्थता) के रुख को दर्शाती है—जहां भारत वैश्विक मामलों में अपनी आवाज और संतुलन बनाए रखता है, लेकिन खुद को किसी एक ध्रुव में नहीं बांधता।
इस रुख के उदाहरण रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष और अन्य कई प्रस्तावों पर देखे गए हैं, जहां भारत ने ना समर्थन किया, ना विरोध—बल्कि अनुपस्थित रहकर अपने स्वतंत्र नीति-निर्माण की दिशा को मजबूत किया।
इस तरह, अनुपस्थित वोट भारत के लिए सतर्क कूटनीति का प्रतीक बनते जा रहे हैं।