केरल हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि कैदियों को दी जाने वाली आपातकालीन छुट्टी के मामलों में जेल प्रशासन भाई के बेटे और बहन के बेटे के बीच कोई भेदभाव नहीं कर सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि दोनों ही रिश्ते समान हैं और उन्हें अलग-अलग तरीके से नहीं देखा जा सकता।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति कौसर एड़प्पगाथ ने उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें कन्नूर स्थित सेंट्रल प्रिजन एंड करेक्शनल होम में बंद आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक कैदी के लिए आपातकालीन छुट्टी की मांग की गई थी। याचिका कैदी के भतीजे द्वारा दायर की गई थी, जिसमें अपने चाचा को पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आपातकालीन अवकाश देने का अनुरोध किया गया था।
जेल अधीक्षक ने छुट्टी देने से इनकार करते हुए तर्क दिया कि नियमों के अनुसार ‘प्रत्यक्ष भतीजा’ (डायरेक्ट नेफ्यू) का अर्थ केवल बहन का बेटा होता है, भाई का बेटा नहीं। इस आधार पर जेल प्रशासन ने कहा कि कैदी जिस पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होना चाहता है, वह भाई के बेटे से जुड़ा है, जो नियमों के तहत अनुमान्य नहीं है।
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हालांकि, हाईकोर्ट ने इस व्याख्या को पूरी तरह खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति एड़प्पगाथ ने कहा कि मैं जेल अधीक्षक द्वारा की गई इस व्याख्या को स्वीकार नहीं कर सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि भाई का बेटा और बहन का बेटा दोनों ही समान रूप से रिश्तेदार हैं और उन्हें कानून के तहत अलग-अलग नहीं माना जा सकता।
अदालत ने यह भी कहा कि जेल नियमों की ऐसी संकीर्ण और भेदभावपूर्ण व्याख्या कैदियों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। इसलिए, कैदी को आपातकालीन छुट्टी देने से इनकार करना अनुचित है। हाईकोर्ट ने जेल अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे इस मामले में नियमों की समान और न्यायसंगत व्याख्या करते हुए कैदी को राहत प्रदान करें।
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