मेघालय स्थित एक संगठन ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा से आग्रह किया है कि वे पूरे पूर्वोत्तर भारत में ब्रिटिश काल के प्रतिबंधात्मक कानून इनर-लाइन परमिट (ILP) को लागू कराने में मदद करें। संगठन का कहना है कि बांग्लादेश से उत्पन्न कथित खतरों और सीमावर्ती क्षेत्रों में बढ़ती गतिविधियों के चलते यह कदम अब आवश्यक हो गया है।
हिन्न्यूत्रेप इंटीग्रेटेड टेरिटोरियल ऑर्गनाइजेशन (HITO) ने कहा कि इनर-लाइन परमिट व्यवस्था पूर्वोत्तर राज्यों की जनसांख्यिकी, संस्कृति और संसाधनों की रक्षा के लिए बेहद जरूरी है। संगठन के अनुसार, बांग्लादेश की ओर से लगातार ऐसे प्रयास हो रहे हैं, जिनसे क्षेत्र को अस्थिर किया जा सकता है। ऐसे में पूरे पूर्वोत्तर में ILP लागू करने से बाहरी लोगों की अनियंत्रित आवाजाही पर रोक लगेगी।
HITO ने यह भी तर्क दिया कि वर्तमान में केवल कुछ ही पूर्वोत्तर राज्यों — जैसे अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम और मणिपुर — में इनर-लाइन परमिट प्रणाली लागू है, जबकि असम, मेघालय और त्रिपुरा जैसे राज्यों में यह व्यवस्था नहीं है। संगठन का मानना है कि यदि पूरे क्षेत्र में समान कानून लागू किया जाए, तो अवैध घुसपैठ, भूमि पर कब्जा और सांस्कृतिक क्षरण जैसी समस्याओं को रोका जा सकेगा।
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संगठन ने असम के मुख्यमंत्री से इस मुद्दे को केंद्र सरकार के समक्ष प्रभावी ढंग से उठाने का अनुरोध किया है। HITO के नेताओं का कहना है कि हिमंत बिस्वा सरमा एक प्रभावशाली नेता हैं और पूर्वोत्तर से जुड़े मामलों में उनकी बात को केंद्र में गंभीरता से सुना जाता है।
इनर-लाइन परमिट व्यवस्था ब्रिटिश शासन के दौरान लागू की गई थी, जिसका उद्देश्य जनजातीय क्षेत्रों को बाहरी प्रभाव से बचाना था। इसके तहत किसी भी बाहरी व्यक्ति को इन क्षेत्रों में प्रवेश करने के लिए विशेष अनुमति लेनी होती है।
इस मांग के बाद पूर्वोत्तर की राजनीति में एक बार फिर ILP को लेकर बहस तेज होने की संभावना है, क्योंकि यह मुद्दा क्षेत्रीय सुरक्षा, पहचान और विकास से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है।
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