भारत में शोध की विश्वसनीयता पर सवाल, NIRF ने दागी शोध को रैंकिंग में गिनने का फैसला लिया
भारत में शोध में धोखाधड़ी और शोधपत्र वापसी (retraction) के मामलों में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। इसके बीच राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) ने अब फैसला किया है कि जिन संस्थानों के शोधपत्र धोखाधड़ी या अनियमितताओं के कारण वापस लिए गए हैं, उन्हें रैंकिंग में नकारात्मक रूप से गिना जाएगा।
2004 से 2020 के बीच, आईआईटी रुड़की के पूर्व प्रबंधन अध्ययन विभागाध्यक्ष डॉ. ज़िल्लुर रहमान के पाँच शोधपत्र, जिनमें कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी, बैंकिंग तकनीक और सेवा वितरण जैसे विषय शामिल थे, वापस लिए गए थे। इसके बावजूद, वे मई 2025 तक उसी संस्थान में डीन और प्रोफेसर के रूप में कार्यरत रहे। यह मामला भारत में अकादमिक जवाबदेही और निगरानी प्रणाली की खामियों को उजागर करता है।
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विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ शोध की संख्या नहीं बल्कि उसकी गुणवत्ता और नैतिकता को प्राथमिकता देना ज़रूरी है। अब तक NIRF केवल शोध प्रकाशनों की संख्या को महत्व देता था, लेकिन अब वापसी किए गए या दागी शोध को भी रैंकिंग में नुकसानदायक कारक माना जाएगा।
देशभर में शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं की ओर से सख्त निगरानी और कानून की मांग उठ रही है, ताकि फर्जी शोध को रोका जा सके और छात्रों व समाज को उच्च गुणवत्ता वाला ज्ञान मिल सके।
यह कदम भारतीय शिक्षा व्यवस्था में शोध की साख को बहाल करने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
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