दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) द्वारा यूएपीए (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती देना कानूनी दृष्टि से संभव है। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में पीएफआई का याचिका दायर करना वैध है और इसे विचाराधीन रखा जा सकता है।
पीएफआई पर भारत में कई राज्यों में असंवैधानिक गतिविधियों में शामिल होने और कानून की अवहेलना करने का आरोप है। केंद्र सरकार ने पिछले साल संगठन पर यूएपीए के तहत प्रतिबंध लगाया था। इस प्रतिबंध के तहत पीएफआई के सभी कार्यालयों, संपत्तियों और बैंक खातों को सील कर दिया गया। सरकार का दावा है कि संगठन देश में आतंकवाद और हिंसा को बढ़ावा देने में शामिल था।
पीएफआई ने इस प्रतिबंध को चुनौती देते हुए कहा है कि केंद्र सरकार ने बिना उचित प्रक्रिया और ठोस प्रमाण के संगठन पर प्रतिबंध लगाया। संगठन का तर्क है कि यह प्रतिबंध संवैधानिक अधिकारों और न्यायिक प्रक्रिया के खिलाफ है।
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने पीएफआई के याचिका दायर करने के अधिकार को स्वीकार किया और कहा कि अदालत इस मामले में सभी कानूनी पहलुओं और साक्ष्यों की समीक्षा करेगी। न्यायालय के अनुसार, किसी भी प्रतिबंध को चुनौती देना लोकतंत्र में संवैधानिक अधिकार का हिस्सा है, और इसे खारिज नहीं किया जा सकता।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि अदालतें नागरिक और संगठनात्मक अधिकारों की रक्षा के लिए स्वतंत्र हैं और सरकारी प्रतिबंधों की समीक्षा करने का अधिकार रखती हैं। अब यह मामला आगे सुनवाई के लिए न्यायालय में प्रस्तुत किया जाएगा।
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