पुन्नप्रा-वायलार विद्रोह, केरल के राजनीतिक इतिहास का एक क्रांतिकारी अध्याय है जिसने राज्य की वामपंथी राजनीति को आकार दिया। यह 1946 में त्रावणकोर रियासत के दौरान हुआ था, जब मजदूरों और किसानों ने समाजवादी और साम्यवादी मूल्यों की स्थापना के लिए राजा के सैन्य शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष छेड़ा।
इस विद्रोह की जड़ें राज्य में सामाजिक असमानता, शोषण और औपनिवेशिक शैली की नीतियों के खिलाफ नाराज़गी में थीं। आंदोलन का नेतृत्व कम्युनिस्ट पार्टी ने किया और इसमें पुन्नप्रा और वायलार गांवों के सैकड़ों मजदूर शामिल हुए। इन गांवों में विरोध को दबाने के लिए की गई राजकीय हिंसा में सैकड़ों लोग मारे गए, जिनकी शहादत आज भी केरल की सामूहिक चेतना में जीवित है।
यह आंदोलन न केवल केरल में वामपंथी आंदोलन की नींव बना, बल्कि कई प्रमुख नेताओं के राजनीतिक जीवन की शुरुआत का स्रोत भी रहा। वी.एस. अच्युतानंदन इन्हीं आंदोलनों से प्रेरित होकर न्याय, समानता और श्रमिक अधिकारों के लिए जीवन भर संघर्षरत रहे।
पुन्नप्रा-वायलार विद्रोह को केवल एक हिंसक टकराव नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और वैचारिक क्रांति के रूप में देखा जाता है जिसने केरल को भारत के सबसे प्रगतिशील राज्यों में से एक बनाने में मदद की। यह आंदोलन आज भी लोगों के संघर्ष और चेतना का प्रतीक बना हुआ है।