तंजावुर स्थित सरस्वती महल पुस्तकालय को केंद्र सरकार ने 'ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व का पुस्तकालय' घोषित किया है। यह पुस्तकालय भारत के सबसे प्राचीन और समृद्ध संग्रहों में से एक है और इसका इतिहास 16वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है।
ऐसा माना जाता है कि इस पुस्तकालय की शुरुआत तंजावुर के नायक शासकों द्वारा की गई थी, जिन्होंने ज्ञान और कला को बढ़ावा देने के लिए इसे अपने महल परिसर में स्थापित किया। बाद में मराठा शासकों ने इसे और समृद्ध किया और यहां दुर्लभ पांडुलिपियों, संस्कृत, तमिल, तेलुगु और मराठी भाषाओं की पुस्तकों का विशाल संग्रह बनाया गया।
सरस्वती महल पुस्तकालय में 60,000 से अधिक पांडुलिपियाँ और ऐतिहासिक दस्तावेज़ मौजूद हैं, जिनमें से कई ताड़पत्रों पर लिखे गए हैं। इनका विषय साहित्य, संगीत, खगोलशास्त्र, चिकित्सा और दर्शन जैसे विविध क्षेत्रों को समाहित करता है।
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संस्कृति मंत्रालय द्वारा यह मान्यता दिए जाने का उद्देश्य इस विरासत स्थल की सुरक्षा और संरक्षण को सुनिश्चित करना है। इसके साथ ही, पुस्तकालय को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के लिए अधिक सुलभ बनाया जाएगा।
स्थानीय प्रशासन और इतिहासकारों ने इस निर्णय का स्वागत किया है और आशा जताई है कि इससे पुस्तकालय को वैश्विक पहचान मिलेगी तथा संरक्षण के प्रयासों को गति मिलेगी। यह कदम भारत की सांस्कृतिक धरोहर के प्रति बढ़ते जागरूकता और संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है।
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