सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि दिव्यांग उम्मीदवारों को आरक्षित सीटें क्यों आवंटित की जाती हैं, भले ही उन्होंने सामान्य श्रेणी की कट-ऑफ से अधिक अंक हासिल किए हों। अदालत ने कहा कि इस नीति के चलते कम अंक पाने वाले अन्य दिव्यांग उम्मीदवारों के अवसर छिन जाते हैं, जबकि आरक्षण का उद्देश्य ही यह है कि पिछड़े और वंचित वर्गों को प्रतिनिधित्व और समान अवसर मिल सके।
न्यायालय ने अपने अवलोकन में कहा कि यदि कोई दिव्यांग उम्मीदवार सामान्य श्रेणी की मेरिट लिस्ट में स्थान पाने के योग्य है, तो उसे सामान्य सीट पर ही दाखिला मिलना चाहिए। लेकिन वर्तमान प्रणाली में ऐसे उम्मीदवारों को भी आरक्षित श्रेणी में गिना जाता है, जिससे वास्तविक रूप से ज़रूरतमंद दिव्यांग अभ्यर्थियों को नुकसान होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से इस नीति पर स्पष्टीकरण मांगा और पूछा कि क्या यह संविधान के समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप है। अदालत ने यह भी कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि आरक्षण का लाभ उन उम्मीदवारों तक पहुंचे जिनके लिए यह बनाया गया है।
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विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला न केवल दिव्यांग उम्मीदवारों के अधिकारों से जुड़ा है, बल्कि देश की आरक्षण प्रणाली की पारदर्शिता और न्यायसंगत क्रियान्वयन का भी परीक्षण है।
केंद्र सरकार ने अदालत से समय मांगा है और आश्वासन दिया है कि इस मुद्दे पर विस्तृत जवाब प्रस्तुत किया जाएगा।
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