सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय निर्वाचन आयोग (EC) से उस याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें विचाराधीन कैदियों (undertrials) को मतदान करने से रोक लगाने के नियम को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता ने अदालत से अपील की है कि सभी कैदियों के लिए blanket disqualification यानी सार्वभौमिक और पूर्ण मतदान निषेध को पुनर्विचार किया जाए।
याचिका में तर्क दिया गया है कि विचाराधीन कैदी, जिन पर अभी न्यायालय का निर्णय नहीं हुआ है, उन्हें समान नागरिक अधिकारों से वंचित करना उचित नहीं है। याचिकाकर्ता ने सुझाव दिया है कि मतदान पर रोक को सीमित और व्यक्तिगत परिस्थितियों के आधार पर लागू किया जाना चाहिए, ताकि केवल उन मामलों में रोक हो जहां कानून स्पष्ट रूप से यह आवश्यक ठहराता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और EC से उत्तर मांगा है कि वे बताएं कि इस blanket disqualification को लागू करने का आधार क्या है और क्या इसे विचाराधीन कैदियों के व्यक्तिगत अधिकारों और संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत मतदान के अधिकार के साथ संतुलित किया गया है।
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विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला न्यायिक समीक्षा और नागरिक अधिकारों के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में लोकतंत्र का मूल आधार हर योग्य नागरिक का मतदान अधिकार है। यदि blanket रोक जारी रहती है, तो यह विचाराधीन कैदियों के मौलिक अधिकारों के हनन का कारण बन सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का इंतजार है कि कैसे मतदान के अधिकार और कानून के प्रावधानों के बीच संतुलन स्थापित किया जाएगा।
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