सुप्रीम कोर्ट ने देश में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए समान रोजगार अवसर और समावेशी चिकित्सा सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति के गठन का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि समाज में समानता और गरिमा का अधिकार हर नागरिक को है, और ट्रांसजेंडर समुदाय को इन बुनियादी अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अक्सर कार्यस्थलों और स्वास्थ्य सेवाओं में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति में सुधार लाने और नीति निर्माण के लिए एक समर्पित समिति का गठन जरूरी है। समिति में केंद्र सरकार, स्वास्थ्य मंत्रालय, श्रम मंत्रालय और ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सभी सार्वजनिक और निजी संस्थानों को अपने कार्यस्थलों पर समावेशी माहौल बनाने की दिशा में कदम उठाने होंगे। अदालत ने केंद्र से यह सुनिश्चित करने को कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए चिकित्सा देखभाल, मानसिक स्वास्थ्य सहायता और रोजगार प्रशिक्षण जैसी सेवाओं तक समान पहुंच उपलब्ध हो।
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अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि 2014 के नालसा बनाम भारत सरकार फैसले में ट्रांसजेंडर समुदाय को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी गई थी, लेकिन अभी भी सामाजिक और आर्थिक स्तर पर उनकी स्थिति में पर्याप्त सुधार नहीं हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय देश में ट्रांसजेंडर अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है और इससे सामाजिक समावेशन की दिशा में नई उम्मीद जगी है।
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