सुप्रीम कोर्ट ने देश में तेजी से बढ़ रहे ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ (Digital Arrests) घोटालों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है और इस संबंध में केंद्र सरकार तथा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) से जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि इन साइबर धोखाधड़ियों से आम नागरिकों की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है और अब समय आ गया है कि केंद्र और राज्य एजेंसियां मिलकर इस पर ठोस कार्रवाई करें।
यह टिप्पणी उस मामले के बाद आई, जिसमें हरियाणा के अंबाला की एक 70 वर्षीय महिला को जालसाजों ने जाली सुप्रीम कोर्ट आदेश दिखाकर ₹1 करोड़ से अधिक की ठगी का शिकार बना दिया। आरोपियों ने खुद को जांच एजेंसी का अधिकारी बताते हुए महिला को डराया कि उसके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज है और उसे “डिजिटल रूप से गिरफ्तार” किया जा सकता है। डर के माहौल में महिला ने उनके बताए बैंक खाते में बड़ी रकम ट्रांसफर कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति के साथ ठगी नहीं, बल्कि न्यायिक संस्थानों की साख को भी नुकसान पहुँचाने वाला अपराध है। अदालत ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि अपराधियों द्वारा न्यायपालिका के नाम और प्रतीक चिह्नों का दुरुपयोग बेहद गंभीर मामला है।
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कोर्ट ने केंद्र सरकार और CBI से पूछा है कि ऐसे मामलों को रोकने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं, और भविष्य में इस तरह के साइबर अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए कौन-सी नीति बनाई जाएगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि “डिजिटल गिरफ्तारी” जैसे घोटाले इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क के बढ़ते दुरुपयोग का नया चेहरा बन चुके हैं, जिन्हें रोकने के लिए तकनीकी और कानूनी दोनों स्तरों पर सख्ती जरूरी है।
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