ठाणे की एक सत्र अदालत ने 2015 में हुए दंगे के मामले में दस साल बाद बड़ा फैसला सुनाते हुए सभी 17 आरोपियों को बरी कर दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वसुंधा एल. भोसले ने कहा कि अभियोजन पक्ष सबूतों के आधार पर आरोपियों का दोष साबित करने में नाकाम रहा और संदेह से परे अपराध सिद्ध नहीं हो सका।
यह मामला 2015 में ठाणे जिले में हुई साम्प्रदायिक झड़पों से जुड़ा था, जिसमें कई लोग घायल हुए थे और संपत्ति को नुकसान पहुंचा था। पुलिस ने घटना के बाद 17 लोगों को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ दंगा करने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और कानून व्यवस्था भंग करने जैसे आरोप लगाए थे।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि गवाहों के बयान आपस में मेल नहीं खाते और अभियोजन द्वारा प्रस्तुत सबूत अपर्याप्त हैं। न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि न्यायालय को केवल ठोस और विश्वसनीय सबूतों के आधार पर ही दोष सिद्ध करना चाहिए, न कि केवल संदेह या अनुमान के आधार पर।
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आरोपियों के वकीलों ने अदालत में तर्क दिया था कि उनके मुवक्किलों को झूठे मामलों में फंसाया गया है और पुलिस ने वास्तविक दोषियों की पहचान करने के बजाय दबाव में आकर गिरफ्तारी की। अदालत ने अभियोजन की कमजोर दलीलों और सबूतों की कमी को देखते हुए आरोपियों को बरी कर दिया।
इस फैसले के बाद आरोपी और उनके परिजन राहत की सांस ले रहे हैं। वहीं, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला जांच एजेंसियों की लापरवाही और सबूतों को सही तरीके से प्रस्तुत न कर पाने की ओर इशारा करता है।
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