तमिलनाडु की राजनीति में अभिनेता से नेता बने विजय ने डीएमके को सीधी चुनौती देने की तैयारी के संकेत दे दिए हैं। गुरुवार को इरोड में आयोजित उनकी रैली, करूर में 27 सितंबर को हुई भगदड़ के बाद राज्य में उनकी पहली सार्वजनिक सभा थी, जिसमें 41 लोगों की जान गई थी। इस रैली को बेहद सोच-समझकर तैयार किया गया कार्यक्रम माना जा रहा है, जो विजय की अब तक की संक्षिप्त और कड़े स्क्रिप्ट वाले आयोजनों की तुलना में कहीं अधिक व्यापक और राजनीतिक रूप से परिपक्व दिखा।
इरोड रैली में करीब 30 हजार लोग जुटे, जिनमें बड़ी संख्या युवाओं और महिलाओं की थी। बार-बार गूंजती तालियों और नारों के कारण विजय के भाषण का प्रवाह कई बार टूटता रहा। हालांकि मंचीय प्रस्तुति में सिनेमा का असर साफ झलक रहा था, लेकिन इस आयोजन की असली अहमियत इस बात में थी कि विजय ने किन मुद्दों को प्रमुखता दी और किनसे दूरी बनाए रखी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विजय ने इस रैली में डीएमके पर हमला करते हुए उसकी सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी रही एआईएडीएमके और खासतौर पर दिवंगत मुख्यमंत्री जे जयललिता की राजनीतिक शैली से प्रेरणा ली। भ्रष्टाचार विरोधी रुख, सख्त प्रशासन, और “मजबूत नेता” की छवि जैसे तत्व उनके भाषण में झलके, जो कभी जयललिता की राजनीति की पहचान थे।
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इस संदेश को और मजबूत किया इरोड रैली में एआईएडीएमके के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री ओ. सेंगोट्टैयन की मौजूदगी ने, जो अब विजय की पार्टी तमिलगा वेत्री कझगम (TVK) के मुख्य समन्वयक हैं। उनकी उपस्थिति ने यह संकेत दिया कि विजय डीएमके के खिलाफ एक व्यापक राजनीतिक आधार तैयार करने की कोशिश में हैं।
कुल मिलाकर, इरोड की रैली ने साफ कर दिया कि विजय केवल लोकप्रियता के सहारे नहीं, बल्कि तमिलनाडु की स्थापित राजनीतिक परंपराओं और रणनीतियों को अपनाकर डीएमके को चुनौती देने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
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