एक नए वैज्ञानिक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होने वाली बारिश हमेशा महासागरों को समान रूप से प्रभावित नहीं करती। शोध के अनुसार, केवल हल्की बारिश ही महासागरों की सतह को अस्थिर कर पानी की विभिन्न परतों को मिश्रित करने में मदद करती है, जबकि भारी बारिश इसका उल्टा असर डाल सकती है।
आम तौर पर यह माना जाता था कि बारिश का पानी महासागर की सतह को हल्का बनाता है, जिससे गहराई में मौजूद पानी के साथ बेहतर मिश्रण होता है और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को लाभ मिलता है। लेकिन इस अध्ययन में पाया गया कि कई बार बारिश सतह को हल्का करने के बजाय उसे और भारी बना देती है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि जब भारी बारिश होती है, तो साथ में ठंडा पानी और घुले हुए तत्व सतह पर जमा हो जाते हैं, जिससे सतह का घनत्व बढ़ जाता है। इसके कारण पानी की ऊपरी परतें नीचे की परतों से नहीं मिल पातीं और महासागर में प्राकृतिक जलमिश्रण बाधित हो जाता है।
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इसके विपरीत, हल्की बारिश अपेक्षाकृत कम घनत्व वाला पानी लाती है, जिससे सतह हल्की होती है और महासागर की परतों के बीच मिश्रण बढ़ता है। यह प्रक्रिया समुद्री तापमान, पोषक तत्वों के वितरण और जलवायु तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह खोज महासागर विज्ञान और जलवायु परिवर्तन के अध्ययन में नई दिशा दे सकती है, क्योंकि बारिश के पैटर्न में बदलाव से समुद्री पारिस्थितिकी और मौसम प्रणालियों पर बड़ा असर पड़ सकता है।
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