सामाजिक कार्यकर्ता उमर खालिद, गुलफिशा फातिमा और शरजील इमाम ने शुक्रवार (31 अक्टूबर 2025) को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वे पिछले पांच साल से जेल में बंद हैं, जबकि फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों से उनके किसी भी तरह के संबंध का कोई सबूत नहीं है। उन्होंने कहा कि बिना मुकदमे के इतने लंबे समय तक जेल में रहना “बिना सुनवाई की सजा” के समान है।
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ इस मामले में उमर खालिद, मीरा हैदर, गुलफिशा फातिमा, शरजील इमाम और शिफा-उर-रहमान की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। यह मामला गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) के तहत दर्ज “बड़ी साजिश” केस से जुड़ा हुआ है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो उमर खालिद का पक्ष रख रहे थे, ने दलील दी कि “किसी भी गवाह ने यह नहीं कहा है कि उमर खालिद का उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई किसी भी हिंसक घटना से कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध था।” उन्होंने कहा कि अभियोजन पक्ष केवल भाषणों और सोशल मीडिया पोस्ट्स को आधार बनाकर आरोप लगा रहा है, जो कानून के अनुरूप नहीं है।
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अभियुक्तों के वकीलों ने अदालत से अपील की कि इतने लंबे समय तक बिना सुनवाई के जेल में रखा जाना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
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