निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड्स में जोखिम का सही आकलन करना अक्सर मुश्किल हो जाता है। ठीक वैसे ही जैसे पैक्ड फूड पर संतृप्त और ट्रांसफैट की मात्रा दी होती है, लेकिन यह समझना कठिन होता है कि 100 ग्राम सर्विंग में 20 ग्राम फैट ज़्यादा है या नहीं। यही समस्या म्यूचुअल फंड्स में भी है, जहां एसेट मैनेजमेंट कंपनियां (AMCs) जोखिम का खुलासा करती हैं, लेकिन वह निवेशकों के लिए आसानी से समझने योग्य नहीं होता।
इस लेख में सुझाव दिया गया है कि AMCs को जोखिम को मापने के लिए एक सरल और मानकीकृत मीट्रिक तैयार करना चाहिए। इससे निवेशक विभिन्न इक्विटी फंड्स के बीच तुलना कर सकेंगे और यह तय कर पाएंगे कि किस फंड में उनका जोखिम सहने की क्षमता के अनुसार निवेश करना सही होगा।
फिलहाल, कई फंड्स केवल सामान्य जोखिम स्तर (जैसे – लो, मीडियम, हाई) बताते हैं, जो निवेशक के लिए स्पष्ट तस्वीर नहीं देता। अगर एक ऐसा मीट्रिक हो जो सभी फंड्स में एक समान रूप से लागू हो, तो यह न केवल पारदर्शिता बढ़ाएगा बल्कि निवेशक को सही निर्णय लेने में मदद करेगा।
और पढ़ें: शीर्ष 10 में से 6 कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में ₹2.22 लाख करोड़ की गिरावट, रिलायंस को सबसे बड़ा झटका
लेख में यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह मीट्रिक केवल उन फंड्स पर लागू होना चाहिए जिनका कुछ वर्षों का ट्रैक रिकॉर्ड हो, न कि नए फंड ऑफर (NFO) पर, ताकि डेटा वास्तविक प्रदर्शन को दर्शा सके।
वित्त विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह मानकीकृत जोखिम मीट्रिक लागू हो जाता है, तो यह निवेशकों को म्यूचुअल फंड्स की तुलना उसी तरह करने में सक्षम बनाएगा जैसे हम खाद्य उत्पादों में पोषण मूल्य का विश्लेषण करते हैं। इससे निवेश जगत में पारदर्शिता और जागरूकता दोनों में वृद्धि होगी।
और पढ़ें: लगातार दूसरे दिन शेयर बाजार में गिरावट, सेंसेक्स 721 अंकों की गिरावट के साथ बंद