भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति संदर्भ पर दी गई राय को “निराशाजनक” बताते हुए कहा कि यह राज्यपालों को विपक्ष-शासित राज्यों में “अतिरिक्त-संवैधानिक शक्तियाँ” इस्तेमाल करने के लिए और बढ़ावा देगा। पार्टी ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट की यह राय राज्यों के अधिकारों पर हो रहे “हमलों” को रोकने में किसी भी तरह सहायक नहीं होगी, जो केंद्र सरकार द्वारा बढ़ती केंद्रीकरण प्रवृत्ति के कारण लगातार जारी है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा था कि वह राज्यपालों और राष्ट्रपति को विधानसभा से पारित विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए कोई समय-सीमा तय नहीं कर सकता, हालांकि उसने यह भी स्पष्ट किया कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते।
CPI(M) ने अपने बयान में कहा कि राष्ट्रपति संदर्भ पर अदालत की राय “संवैधानिक संतुलन और नियंत्रण” की भावना से परे है। पार्टी के अनुसार, अदालत का यह मत राज्यपालों के “मनमाने और राजनीतिक व्यवहार” को रोकने में नाकाम रहेगा, खासकर तब जब कई राज्यपाल केंद्र सरकार के राजनीतिक प्रतिनिधि की तरह कार्य कर रहे हैं।
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पार्टी ने यह भी कहा कि सबसे “पिछड़ा और चिंताजनक” सुझाव यह है कि यदि राज्यपाल द्वारा पुनर्विचार के लिए लौटाया गया विधेयक राज्य विधानसभा द्वारा दोबारा पास कर दिया जाए, तब भी राज्यपाल उस पर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य नहीं हैं। इसके बजाय वे विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं, जिससे वह अनिश्चितकाल तक लंबित रह सकता है।
CPI(M) के अनुसार, अदालत ने केवल इतना राहत दी है कि राज्यपाल द्वारा लंबे समय तक कार्रवाई न करने पर सीमित न्यायिक हस्तक्षेप संभव है, लेकिन “लंबा समय” क्या है, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है। पार्टी का कहना है कि यह राय राज्यपालों के मनमाने व्यवहार पर किसी वास्तविक संवैधानिक रोक का प्रावधान नहीं करती।
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