भारतीय रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरकर 88.79 पर पहुँच गया, जो अब तक का सबसे निचला समापन स्तर है। इस गिरावट के पीछे वैश्विक व्यापार अनिश्चितताओं और अमेरिकी वीज़ा शुल्क वृद्धि का असर बताया जा रहा है।
विदेशी मुद्रा (फॉरेक्स) व्यापारियों ने बताया कि रुपया इस समय इतिहासिक निचले स्तर के आसपास मंडरा रहा है, क्योंकि निवेशक भारत की आईटी सेवाओं के निर्यात पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव को लेकर चिंतित हैं। अमेरिका द्वारा H-1बी वीज़ा शुल्क में वृद्धि ने भारतीय आईटी कंपनियों के लिए लागत बढ़ा दी है और भविष्य की परियोजनाओं पर अनिश्चितता पैदा कर दी है।
अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी अस्थिरता के चलते रुपया दबाव में है। डॉलर की मजबूती और वैश्विक ब्याज दरों में बदलाव से उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्रा पर असर पड़ रहा है। निवेशक विदेशी निवेश और व्यापारिक लेन-देन में सतर्कता बरत रहे हैं।
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विशेषज्ञों का कहना है कि यह गिरावट अस्थायी हो सकती है, लेकिन रुपये के लिए चुनौतीपूर्ण माहौल बरकरार है। उन्होंने निवेशकों को सलाह दी है कि वे बाजार के उतार-चढ़ाव को देखते हुए रणनीति अपनाएं और लंबी अवधि की योजना पर ध्यान दें।
हालांकि, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अब तक मुद्रा स्थिरता के लिए कोई तत्काल हस्तक्षेप नहीं किया है, लेकिन संभावना है कि स्थिति और बिगड़ने पर मौद्रिक उपायों के माध्यम से स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है।
इस गिरावट से स्पष्ट है कि रुपया वैश्विक और घरेलू आर्थिक कारकों से सीधे प्रभावित होता है और निवेशकों और व्यापारियों के लिए सतर्कता आवश्यक है। भविष्य में वैश्विक बाजार और घरेलू नीतियाँ रुपये की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएँगी
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