सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में पारिस्थितिक असंतुलन और पर्यावरणीय स्थिति के मुद्दों की जांच के लिए न्यायमित्र (amicus curiae) नियुक्त करने का निर्णय लिया है। यह कदम अदालत ने उस समय उठाया जब उसने अपने संज्ञान में लिया गया एक suo motu मामला सुनना शुरू किया।
इस मामले की सुनवाई जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच द्वारा की जा रही है। अदालत ने देखा कि हिमाचल प्रदेश में पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय परिस्थितियों में कई गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, जिनका प्रभाव न केवल स्थानीय निवासियों पर पड़ता है बल्कि पूरे क्षेत्र की जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों पर भी होता है।
न्यायमित्र नियुक्त करने का उद्देश्य अदालत को इस मामले में विशेषज्ञ दृष्टिकोण और सुझाव प्रदान करना है। न्यायमित्र के माध्यम से कोर्ट को यह समझने में मदद मिलेगी कि पर्यावरणीय असंतुलन के कारण कौन से कदम उठाए जाने चाहिए और किन नीतियों और नियमों का पालन किया जाना चाहिए।
और पढ़ें: अपराध पीड़ित और उनके वारिस आरोपी की बरी होने पर अपील कर सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पर्यावरणीय संतुलन और पारिस्थितिकी संरक्षण के मुद्दे न केवल राज्य सरकार की जिम्मेदारी हैं बल्कि राष्ट्रीय महत्व के मामले हैं। इसलिए, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सक्रिय रूप से हस्तक्षेप किया है ताकि हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायमित्र के योगदान से अदालत को आवश्यक वैज्ञानिक, पर्यावरणीय और सामाजिक दृष्टिकोण मिल सकेगा, जो हिमाचल प्रदेश में स्थायी और संतुलित विकास सुनिश्चित करने में मददगार होगा।
और पढ़ें: मृत्युदंड को अनुच्छेद 32 के तहत चुनौती दी जा सकती है यदि प्रक्रिया में चूक हो: सुप्रीम कोर्ट