सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार, 13 नवंबर 2025 को झारखंड सरकार को निर्देश दिया कि सारांदा वन क्षेत्र के 31,468.25 हेक्टेयर (लगभग 314 वर्ग किमी) को वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया जाए। यह क्षेत्र आदिवासी समुदायों का घर होने के साथ-साथ लुप्तप्राय जीव-जंतुओं का आवास भी है। सारांदा वन झारखंड का सबसे बड़ा साल वन क्षेत्र है और भारत के कुल लौह अयस्क भंडार का लगभग 26% इसी क्षेत्र में स्थित है।
निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि वन्यजीव संरक्षण और सतत लौह अयस्क खनन के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवाई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, "राज्य अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता। 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र को सारांदा वन्यजीव अभयारण्य घोषित करना अनिवार्य है।"
सारांदा वन क्षेत्र में कई आदिवासी समुदाय रहते हैं और यह क्षेत्र न केवल जैव विविधता बल्कि सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। प्रारंभ में राज्य ने छोटे क्षेत्र को ही अभयारण्य घोषित करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन बाद में स्पष्ट किया कि विस्तृत क्षेत्र में कोई खदानें नहीं हैं।
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सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला जैव विविधता की सुरक्षा, आदिवासी अधिकारों की रक्षा और प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित करता है। न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि जल्द से जल्द इस क्षेत्र को आधिकारिक रूप से वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया जाए और इसके संरक्षण के लिए प्रभावी उपाय किए जाएं।
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