यूरोप में गरीबी और भूख से निपटने के लिए दी जाने वाली मानवीय सहायता अब भू-राजनीतिक रणनीतियों की भेंट चढ़ती नजर आ रही है। विश्लेषकों का कहना है कि कई यूरोपीय देश यूक्रेन युद्ध और रक्षा खर्च को प्राथमिकता देते हुए विकासशील देशों के लिए सहायता में भारी कटौती कर रहे हैं।
इस वर्ष की शुरुआत में मानवीय संगठनों ने अपील की थी कि अमेरिका द्वारा यूएसएआईडी कार्यक्रम को कमजोर किए जाने के बाद यूरोपीय देश आगे आकर कमी पूरी करें। लेकिन इसके उलट, कई देशों ने अपने वैश्विक दायित्वों से कदम पीछे खींच लिए।
दिसंबर में स्वीडन ने मोज़ाम्बिक, ज़िम्बाब्वे, लाइबेरिया, तंज़ानिया और बोलीविया के लिए विकास सहायता में 10 अरब क्रोनर की कटौती की घोषणा की। जर्मनी का 2026 का मानवीय बजट भी पिछले वर्ष के मुकाबले आधे से कम कर दिया गया है और उसे यूरोप के लिए “प्राथमिक” क्षेत्रों तक सीमित किया जा रहा है।
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मानवीय विशेषज्ञों का कहना है कि यह बदलाव वैश्विक एकजुटता की भावना को कमजोर कर रहा है। जर्मनी ने लैटिन अमेरिका और एशिया में अपनी भूमिका घटाई है, जबकि यूक्रेन को उसकी भौगोलिक स्थिति के कारण कटौती से बचाया गया है।
ब्रिटेन ने भी रक्षा खर्च के लिए सहायता में कटौती की है। नॉर्वे ने यूक्रेन को नागरिक सहायता बढ़ाई है, लेकिन इसके बदले अफ्रीका के लिए फंड कम किए गए हैं। फ्रांस ने खाद्य सहायता में 60 प्रतिशत कटौती करते हुए रक्षा बजट बढ़ाया है।
इन फैसलों का सबसे गंभीर असर मोज़ाम्बिक जैसे देशों पर पड़ा है, जहां प्राकृतिक आपदाओं और संघर्ष के कारण लाखों लोग विस्थापित हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, देश को आवश्यक धन का केवल एक छोटा हिस्सा ही मिल पाया है, जिससे खाद्य वितरण और स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि एचआईवी/एड्स, शिक्षा और बाल संरक्षण के क्षेत्र में वर्षों की प्रगति पलट सकती है। यदि यह रुझान जारी रहा, तो 2026 विकासशील देशों के लिए और भी कठिन साबित हो सकता है।
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