सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र में लंबे समय से अटके स्थानीय निकाय चुनावों को हरी झंडी दे दी। 2022 से रुके हुए ये चुनाव अब राज्य में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को पुनर्जीवित करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे। इस फैसले के साथ पंचायत राज संस्थाओं का नियंत्रण अधिकारियों से हटकर चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथों में वापस जाएगा।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने यह आदेश एक अंतरिम उपाय के रूप में जारी किया। यह फैसला स्थानीय निकायों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर चले आ रहे लंबे विवाद के बीच आया है।
मामले की सुनवाई उन याचिकाओं पर हो रही थी जिनमें यह दावा किया गया था कि राज्य सरकार द्वारा जे.के. बंथिया आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के निर्णय से कई चुनाव-प्रभावित स्थानीय निकायों में कुल आरक्षण सीमा 50 प्रतिशत की संवैधानिक सीमा को पार कर गई थी। याचिकाओं में यह भी कहा गया था कि इस उच्च आरक्षण के कारण चुनाव प्रक्रिया बाधित हो रही थी, जिसके चलते पिछले तीन वर्षों से स्थानीय निकायों पर नौकरशाही का नियंत्रण बना हुआ था।
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सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लोकतांत्रिक ढांचे को बनाए रखने और जनप्रतिनिधियों को शक्ति हस्तांतरित करने के लिए चुनाव कराना आवश्यक है। अदालत ने कहा कि आरक्षण विवाद पर अंतिम निर्णय आने तक चुनाव प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाए और अंतरिम व्यवस्था के तहत स्थानीय निकाय चुनाव अविलंब करवाए जाएं।
अदालत के इस कदम से अब राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करेगा। राजनीतिक दलों और राज्य सरकार की नजरें अब इस बात पर होंगी कि आरक्षण विवाद के अंतिम समाधान तक चुनाव कैसे संचालित किए जाते हैं। यह फैसला महाराष्ट्र में लोकतंत्र को नई दिशा देने वाला माना जा रहा है।
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