चीन ने शनिवार (1 नवंबर 2025) को अपना 42वां अंटार्कटिक अभियान दल रवाना किया है, जिसका उद्देश्य दुनिया के सबसे ठंडे महाद्वीप अंटार्कटिका में ड्रिलिंग प्रयोग करना है ताकि उसके विकास क्रम और प्राकृतिक संसाधनों का अध्ययन किया जा सके।
चीन अब तक अंटार्कटिका में पांच अनुसंधान केंद्र स्थापित कर चुका है, जहां वह नियमित रूप से वैज्ञानिक अभियानों का संचालन करता है। हालांकि, यह पहली बार होगा जब उसका दल अंटार्कटिका की बर्फ की चादर के नीचे ड्रिलिंग करेगा।
अभियान के प्रमुख वैज्ञानिक वेई फुहाई ने बताया कि इस मिशन में पहली बार अंटार्कटिका की भीतरी झीलों में वैज्ञानिक ड्रिलिंग की जाएगी। चीन इस कार्य के लिए देश में निर्मित हॉट-वॉटर और थर्मल-मेल्टिंग ड्रिल सिस्टम का उपयोग करेगा, जिसके माध्यम से 3,000 मीटर से अधिक मोटी बर्फ को भेदते हुए स्वच्छ सैंपल लिए जाएंगे।
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अंटार्कटिक झीलें अत्यधिक दबाव, ठंड, अंधकार और पोषण की कमी जैसे चरम परिस्थितियों में स्थित हैं, जो एक अनोखे पारिस्थितिकी तंत्र की मेजबानी करती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, इन झीलों का अध्ययन जलवायु परिवर्तन और पृथ्वी के इतिहास को समझने में अहम भूमिका निभाएगा।
चीन की यह टीम अमंडसन सागर और रॉस सागर जैसे क्षेत्रों में दीर्घकालिक अवलोकन भी करेगी, ताकि वैश्विक जलवायु परिवर्तन में अंटार्कटिका की भूमिका को समझा जा सके।
चीन के ध्रुवीय प्रशासन के उपनिदेशक लोंग वेई ने कहा, “अंटार्कटिका को समझना, उसकी रक्षा करना और उसका सतत उपयोग करना चीन के समुद्री शक्ति बनने के लक्ष्य का हिस्सा है।”
वर्तमान में अंटार्कटिका में 29 देशों की लगभग 70 स्थायी अनुसंधान स्टेशन हैं। भारत के दो सक्रिय स्टेशन – मैत्री और भारती, जबकि अमेरिका के छह और ऑस्ट्रेलिया के तीन स्टेशन हैं। चीन ने 1983 में अंटार्कटिक संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जो व्यावसायिक खनन पर प्रतिबंध लगाती है।
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