वॉशिंगटन की राजनीतिक गलियारों में हवा पहले से ज़्यादा गरम है और अमेरिकी सरकार लगभग पूरी तरह ठप पड़ी है। सीनेट में किसी समाधान की उम्मीद ने गुरुवार सुबह कुछ राहत दी थी, पर शाम होते-होते सांसद सप्ताहांत की छुट्टी पर निकल गए — और जनता को फिर निराशा हाथ लगी।
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने shutdown संकट में हस्तक्षेप करते हुए रिपब्लिकन सांसदों से ‘फिलिबस्टर’ नियम समाप्त करने की मांग की है। इस नियम के तहत अधिकांश विधेयकों को पारित करने के लिए 60 वोटों की आवश्यकता होती है। ट्रंप का कहना है कि यह समय है “न्यूक्लियर ऑप्शन” अपनाने का, जिससे रिपब्लिकन बिना डेमोक्रेटिक समर्थन के सरकार दोबारा शुरू कर सकते हैं। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम अमेरिकी राजनीति की पूरी संरचना को बदल सकता है, क्योंकि भविष्य में सत्ता में आने पर डेमोक्रेट्स भी इसका इस्तेमाल अपने हित में कर सकते हैं।
सीनेट के नेता जॉन थ्यून पर दबाव बढ़ रहा है, जबकि दोनों दल इस राजनीतिक खेल में अपने-अपने मतदाताओं के प्रति “कर्तव्यनिष्ठ” होने का दावा कर रहे हैं। डेमोक्रेट्स सरकार के फंड बढ़ाने से तब तक इनकार कर रहे हैं जब तक रिपब्लिकन ओबामाकेयर सब्सिडी बढ़ाने को मंजूरी नहीं देते। दूसरी ओर रिपब्लिकन कहते हैं कि बातचीत तभी होगी जब सरकार दोबारा खुलेगी। इस गतिरोध के चलते 40 मिलियन से अधिक अमेरिकी नागरिकों के लिए SNAP जैसी खाद्य योजनाएं बंद होने के कगार पर हैं। लाखों फेडरल कर्मचारी वेतन के बिना काम कर रहे हैं और कई अपने परिवार का पेट भरने के लिए फूड ड्राइव पर निर्भर हैं।
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राजनीतिक जुबानी जंग अब चरम पर है। डेमोक्रेट्स रिपब्लिकन पर बच्चों को भूखा रखने का आरोप लगा रहे हैं, जबकि उपराष्ट्रपति जे.डी. वांस ने डेमोक्रेट्स पर एयर ट्रैफिक कंट्रोलर्स पर दबाव डालने का आरोप लगाया है। पेनसिल्वेनिया के डेमोक्रेटिक सीनेटर जॉन फेटरमैन ने अपनी ही पार्टी की रणनीति पर नाराज़गी जताते हुए कहा, “हम खुद को संभाल नहीं पा रहे और सरकार बंद पड़ी है।”
इस बीच, बोस्टन की एक संघीय न्यायाधीश इंदिरा तलवानी ने कहा कि वह खाद्य सहायता रोकने नहीं देंगी। उन्होंने सवाल उठाया कि जब लाखों लोग भूखे हैं तो आपातकालीन फंड का उपयोग क्यों नहीं हो रहा। उनका बयान “हम सबको मरने नहीं देंगे” वॉशिंगटन की राजनीति पर गहरी चोट था।
अमेरिका में यह सरकारी ठप अब अपने सबसे लंबे दौर की ओर बढ़ रहा है। दोनों दल अपनी-अपनी राजनीतिक रेखाओं में इतने जकड़े हैं कि किसी भी समझौते की गुंजाइश नहीं दिख रही। नतीजा — जनता भुगत रही है, जबकि नेता एक-दूसरे को दोष देते जा रहे हैं।
थ्यून ने भले कहा हो कि “दोनों दल बातचीत में हैं,” पर अब तक नतीजा शून्य है। हकीकत यही है कि अमेरिकी लोकतंत्र की मूल भावना — जनता के हित में काम करना — इस सत्ता संघर्ष में कहीं खो गई है।
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