बांग्लादेश द्वारा भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी ने एक बार फिर भारत और बांग्लादेश के बीच तनावपूर्ण संबंधों को उजागर कर दिया है। हालिया घटनाक्रम के बाद कूटनीतिक हलकों में यह माना जा रहा है कि दोनों देशों के बीच मछुआरों को लेकर पहले से चला आ रहा "अलिखित समझौता" अब प्रभावी नहीं रह गया है।
नीति-निर्माताओं का कहना है कि शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से भारत-बांग्लादेश के बीच समन्वय की कमी स्पष्ट रूप से सामने आने लगी है। पहले एक परंपरा के रूप में देखा जाता था कि दोनों देशों के मछुआरे यदि गलती से समुद्री सीमा पार भी कर लें, तो उन्हें आपसी सहमति और मानवीय आधार पर छोड़ दिया जाता था। लेकिन अब यह रुख बदलता दिख रहा है।
सूत्रों के अनुसार, बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार या प्रशासन द्वारा इस अनौपचारिक समझ को सम्मान नहीं दिया जा रहा है, जिससे भारतीय मछुआरे कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे हैं। इस घटनाक्रम को लेकर भारत में चिंता की लहर है और इसे दोनों देशों के बीच बिगड़ते रिश्तों का संकेत माना जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे पर जल्द से जल्द कूटनीतिक बातचीत की आवश्यकता है ताकि समुद्री सीमा पर सहयोग की पुरानी भावना को बहाल किया जा सके। साथ ही यह भी आवश्यक है कि दोनों देश एक औपचारिक समझौते की दिशा में आगे बढ़ें जिससे भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचा जा सके।
यह घटना न केवल मानवीय दृष्टिकोण से गंभीर है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और आपसी विश्वास के लिए भी एक चुनौती है।