बिहार विधानसभा चुनाव के इस बार के चुनाव अभियान में पांच प्रमुख धारणाएं मतदाताओं के बीच हावी दिखाई दे रही हैं। चुनावी माहौल में पारंपरिक मुद्दों की जगह अब नेतृत्व, सेहत और नई राजनीतिक ऊर्जा पर चर्चा अधिक हो रही है।
पहली धारणा यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अभी भी अन्य नेताओं की तुलना में लोकप्रिय हैं, लेकिन उनकी गिरती सेहत और उम्र को लेकर मतदाताओं के बीच चिंता देखी जा रही है। पुरुष मतदाताओं में यह विषय विशेष रूप से चर्चा में है। उनकी सरकार की ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ के तहत ‘जीविका दीदियों’ को ₹10,000 की प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की छवि को मजबूत किया है।
दूसरी धारणा यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अब भी मजबूत बनी हुई है और मतदाताओं के एक बड़े वर्ग में उनके नेतृत्व के प्रति आकर्षण और भरोसा कायम है।
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तीसरी धारणा तेजस्वी यादव से जुड़ी है, जो अपनी राजनीतिक पहचान को मजबूत करने की कोशिश में हैं, लेकिन अपने माता-पिता के शासनकाल की ‘जंगलराज’ या ‘कानूनहीनता’ की छवि से अब भी जूझ रहे हैं।
चौथी धारणा यह है कि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का जमीनी स्तर पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं दिख रहा।
पांचवीं धारणा यह है कि कांग्रेस पार्टी, जो दशकों से बिहार की राजनीति में कमजोर स्थिति में थी, अब फिर से प्रतिस्पर्धा में वापसी करती दिख रही है।
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