दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार (3 नवंबर 2025) को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि देश में किसी भी लॉ छात्र को न्यूनतम उपस्थिति की कमी के कारण परीक्षा में बैठने से नहीं रोका जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और अमित शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश देते हुए कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को कानून महाविद्यालयों में अनिवार्य उपस्थिति से जुड़े नियमों में संशोधन करना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि उपस्थिति की कमी के चलते किसी छात्र की अगली सेमेस्टर में पदोन्नति नहीं रोकी जानी चाहिए।
यह मामला अमिटी लॉ छात्र सुषांत रोहिल्ला की आत्महत्या से जुड़ा है, जिन्होंने 2016 में परीक्षा में बैठने से रोके जाने के बाद आत्महत्या कर ली थी। सुप्रीम कोर्ट ने उस घटना के बाद स्वतः संज्ञान लिया था और मामला 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट को स्थानांतरित कर दिया गया था।
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अदालत ने कहा कि शिक्षा, विशेषकर कानूनी शिक्षा, इतनी कठोर नहीं होनी चाहिए कि वह छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाए या उन्हें आत्महत्या तक के लिए मजबूर करे।
हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि जब तक बीसीआई परामर्श प्रक्रिया पूरी नहीं करता, देश के किसी भी मान्यता प्राप्त लॉ कॉलेज या विश्वविद्यालय को उपस्थिति की कमी के आधार पर छात्रों को परीक्षा से रोकने की अनुमति नहीं होगी।
अदालत ने यह भी कहा कि बीसीआई को छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के साथ मिलकर परामर्श करना चाहिए ताकि छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
साथ ही, अदालत ने यह व्यवस्था भी दी कि कॉलेज साप्ताहिक उपस्थिति अपडेट ऑनलाइन जारी करें, मासिक रिपोर्ट अभिभावकों को भेजें, और जिन छात्रों की उपस्थिति कम है, उनके लिए अतिरिक्त कक्षाएं आयोजित करें।
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