भारत की कानूनी व्यवस्था में भाई-भतीजावाद और अभिजात्य प्रवृत्तियों के चलते प्रथम पीढ़ी के वकीलों को लगातार हाशिये पर धकेला जा रहा है। यह कहना है फर्स्ट जेनरेशन लॉयर्स एसोसिएशन (First Generation Lawyers Association) के अध्यक्ष रुद्र विक्रम सिंह का। उनका कहना है कि दूसरी और तीसरी पीढ़ी के वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता बनने, न्यायाधीश नियुक्त होने और सरकारी वकील (गवर्नमेंट काउंसल) बनने में पारिवारिक विरासत का लाभ मिलता है, जबकि प्रथम पीढ़ी के वकीलों को ऐसी कोई सुविधा या मार्गदर्शन उपलब्ध नहीं होता।
हाल ही में यह संगठन तब चर्चा में आया जब इसने दो जनहित याचिकाएं (PIL) दायर कीं। पहली याचिका केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में प्रतिनिधित्व के लिए 650 सरकारी वकीलों की नियुक्ति को चुनौती देती है, जबकि दूसरी दिल्ली हाई कोर्ट में वकीलों के चैंबर आवंटन की “मनमानी और भेदभावपूर्ण व्यवस्था” पर सवाल उठाती है। संगठन का आरोप है कि चैंबर आवंटन और नियुक्तियों में पारदर्शिता का अभाव है और इसका सीधा नुकसान उन वकीलों को होता है, जिनका कोई कानूनी पारिवारिक बैकग्राउंड नहीं है।
रुद्र विक्रम सिंह स्वयं एक इंजीनियर रह चुके हैं और प्रथम पीढ़ी के वकील हैं। वे भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR), भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (ICPR) और केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय सहित कई प्रतिष्ठित संस्थानों के कानूनी सलाहकार भी हैं। उनके अनुसार, यह संगठन वर्ष 2023 में इसी उद्देश्य से स्थापित किया गया था कि कानूनी क्षेत्र में व्याप्त भाई-भतीजावाद के खिलाफ आवाज उठाई जा सके और उन युवा वकीलों की मदद की जा सके, जिनके पास मार्गदर्शन या प्रभावशाली संपर्क नहीं हैं।
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उन्होंने कहा कि प्रथम पीढ़ी के वकीलों को न केवल अवसरों की कमी का सामना करना पड़ता है, बल्कि उन्हें पेशेवर पहचान बनाने के लिए कई गुना अधिक संघर्ष करना पड़ता है। संगठन का लक्ष्य एक निष्पक्ष, पारदर्शी और समान अवसरों वाली कानूनी व्यवस्था सुनिश्चित करना है।
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