फ्रांस ने सितंबर में फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देने का निर्णय लिया है, जो राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से गहरी नाराजगी और गाजा युद्ध को लेकर बढ़ती चिंता को दर्शाता है। यह कदम फ्रांस की मध्य-पूर्व शांति प्रक्रिया में अधिक सक्रिय और रचनात्मक भूमिका निभाने की इच्छा को भी दर्शाता है।
संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से अब तक 147 देश, जिनमें भारत, चीन और रूस शामिल हैं, पहले ही फिलिस्तीन राज्य को मान्यता दे चुके हैं। हालांकि, पश्चिमी शक्तिशाली राष्ट्र, जो इजरायल के करीबी सहयोगी माने जाते हैं, अब तक आधिकारिक मान्यता देने से बचते रहे हैं, भले ही वे दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन करते हों।
अक्टूबर 2023 में गाजा युद्ध के बाद इस रुख में बदलाव दिखने लगा है। कई यूरोपीय देशों ने फिलिस्तीन की स्वतंत्रता को औपचारिक रूप से मान्यता दी है। पिछले साल स्पेन, आयरलैंड, नॉर्वे और स्लोवेनिया ने भी यह कदम उठाया। यदि मैक्रों अपना यह निर्णय लागू करते हैं, तो फ्रांस ऐसा करने वाला पहला G-7 सदस्य देश होगा।
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विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम तत्काल शांति प्रक्रिया पर सीधा प्रभाव नहीं डालेगा, लेकिन यह संकेत देता है कि पश्चिमी यूरोपीय देश अब फिलिस्तीन की राज्य मान्यता के पक्ष में ठोस और अपरिवर्तनीय कदम उठाने के लिए तैयार हैं। यह बदलाव तेल अवीव और वॉशिंगटन के विरोध के बावजूद हो रहा है, जो इस लंबे समय से चले आ रहे विवाद में वैश्विक भावना में बदलाव का स्पष्ट संकेत है।
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