विपक्ष शासित राज्यों ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि राज्यपालों को विधेयकों पर ‘तुरंत’ निर्णय लेना चाहिए और इसके लिए तीन माह का समय भी अत्यधिक लंबा है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि विधेयक जनता की इच्छा का प्रतीक होते हैं और इन्हें लंबित रखना लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है।
सुप्रीम कोर्ट में यह बहस राष्ट्रपति के पास लंबित विधेयकों के संदर्भ में जारी व्यापक सुनवाई का हिस्सा है। विपक्ष शासित राज्यों का कहना है कि राज्यपाल विधेयकों को रोक नहीं सकते और न ही इन्हें अनिश्चितकाल तक लंबित रखा जा सकता है।
सिब्बल ने अदालत में कहा, “तीन माह का समय भी बहुत लंबा है। विधेयक लोगों की आकांक्षा का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे इंतजार नहीं कर सकते। राज्यपाल को ‘फौरन’ निर्णय करना चाहिए।”
और पढ़ें: एल्गार परिषद मामला: सुरेंद्र गाडलिंग की जमानत याचिका पर सुनवाई 17 सितंबर तक टली
सुनवाई के दौरान कुछ राज्यों ने यह भी तर्क दिया कि राज्यपालों द्वारा विधेयकों को रोके रखना संविधान की मंशा के विपरीत है और राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र को बाधित करता है।
सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर केंद्र और विपक्ष शासित राज्यों के बीच टकराव को देखते हुए स्पष्ट दिशानिर्देश तैयार करने पर विचार कर रही है, ताकि राज्यपालों द्वारा विधेयकों के लंबित रहने की समस्या का समाधान हो सके।
और पढ़ें: राष्ट्रपति संदर्भ पर सुनवाई: राष्ट्रपति और राज्यपालों के विवेकाधिकार का तर्क मूल रूप से गलत – कर्नाटक का सुप्रीम कोर्ट में बयान