भारत के केंद्रीय बैंक रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) और देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के अर्थशास्त्रियों के बीच सार्वजनिक विवाद ने आर्थिक नीति के गलियारों में हलचल मचा दी है। यह विवाद LinkedIn जैसी पेशेवर नेटवर्किंग साइट पर उभर कर सामने आया, और दोनों संस्थानों की प्रतिष्ठा के चलते इसे गंभीरता से देखा जा रहा है।
इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब आरबीआई के मोंटेरी पॉलिसी विभाग के सहायक महाप्रबंधक सार्थक गुलाटी ने एसबीआई की रिसर्च टीम पर आरोप लगाया कि उन्होंने हाल ही में प्रकाशित एसबीआई के लोकप्रिय प्रकाशन Ecowrap में आरबीआई की मौद्रिक नीति रिपोर्ट (MPRs) के कुछ हिस्सों की शब्दशः नकल की है, और उसके स्रोत का उचित उल्लेख नहीं किया गया।
गुलाटी ने स्पष्ट किया कि एसबीआई की रिपोर्ट में जिन हिस्सों की नकल की गई, वे आरबीआई के MPR में पहले से मौजूद थे, और इस प्रकार यह साहित्यिक चोरी (plagiarism) के दायरे में आता है।
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एसबीआई की रिसर्च टीम ने इस आरोप का जवाब देते हुए कहा कि उनके रिपोर्ट में उपयोग किए गए आंकड़े और विश्लेषण स्वतंत्र हैं, और यदि कोई समानता पाई गई है तो वह अनजाने में हुई होगी। उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य किसी भी तरह से केंद्रीय बैंक की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाना नहीं था।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह का विवाद भारतीय वित्तीय और आर्थिक अनुसंधान की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है। साथ ही, यह RBI और SBI जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं के बीच व्यावसायिक और नैतिक जिम्मेदारियों पर गंभीर चर्चा का मार्ग खोलता है।
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