सिंकहोल यानी ज़मीन में अचानक बनने वाले बड़े गड्ढे, आजकल शहरी क्षेत्रों में तेजी से देखने को मिल रहे हैं। अक्सर यह हादसे सड़कों, इमारतों या पाइपलाइनों के नीचे की ज़मीन धंस जाने से होते हैं।
सिंकहोल प्राकृतिक रूप से भी बन सकते हैं, लेकिन शहरों में इनका सीधा संबंध मानव गतिविधियों से होता है। कई शहर कार्स्ट भूभाग पर बसे हैं, जहाँ नीचे की चट्टानें जैसे चूना पत्थर, जिप्सम या नमक पानी में घुल जाती हैं। समय के साथ जब बारिश का पानी या पाइपलाइन से रिसाव नीचे तक जाता है, तो यह चट्टानों को धीरे-धीरे घोल देता है। इससे ज़मीन के भीतर खाली जगह यानी गुफानुमा संरचना बन जाती है।
जब इन भूमिगत गुफाओं की छत अपना भार सहन नहीं कर पाती, तो वह अचानक ढह जाती है। नतीजा होता है सतह पर बड़ा गड्ढा यानी सिंकहोल।
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विशेषज्ञों का कहना है कि पुराने या टूटे हुए पानी की सप्लाई पाइप और सीवर लाइनें लगातार रिसाव करती रहती हैं। वर्षों तक यह रिसाव मिट्टी को बहा ले जाता है और नीचे एक खोखली जगह बना देता है। यह प्रक्रिया लंबे समय तक अनदेखी रह सकती है और अचानक एक दिन ज़मीन धंस जाती है।
शहरी क्षेत्रों में सिंकहोल केवल बुनियादी ढांचे को नुकसान नहीं पहुँचाते, बल्कि लोगों की जान के लिए भी बड़ा खतरा बनते हैं। वाहन दुर्घटनाएँ, इमारतों का धंसना और यातायात अव्यवस्था इसकी बड़ी चुनौतियाँ हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि नियमित निरीक्षण और मरम्मत, विशेषकर पानी व सीवर पाइपलाइनों की, सिंकहोल बनने की आशंका को काफी हद तक रोक सकती है। इसके अलावा शहरों की भूगर्भीय संरचना का अध्ययन और समय-समय पर निगरानी बेहद जरूरी है।
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