पूर्व नीति सलाहकार और नीति आयोग के सदस्य अमिताभ कान्त ने चेतावनी दी है कि अमेरिकी सरकार द्वारा H-1B वीज़ा शुल्क को 1,00,000 डॉलर तक बढ़ाने का निर्णय अमेरिका में नवाचार और अनुसंधान पर नकारात्मक असर डाल सकता है। उनका कहना है कि इससे अगली तकनीकी और पेटेंट की लहर अमेरिकी शहरों के बजाय भारतीय शहरों में विकसित होगी।
कान्त ने कहा कि भारतीय आईटी और तकनीकी पेशेवर, जिन्होंने लंबे समय से अमेरिकी कंपनियों के लिए नवाचार और पेटेंट विकसित किए हैं, इस महंगे शुल्क के कारण H-1B वीज़ा प्राप्त करने में असमर्थ हो सकते हैं। इससे अमेरिका की तकनीकी प्रतिस्पर्धा कमजोर हो सकती है और दुनिया में उच्च तकनीकी नेतृत्व का स्थान भारत जैसी नवोदयशील अर्थव्यवस्थाओं को मिल सकता है।
ट्रम्प प्रशासन ने H-1B वीज़ा शुल्क वृद्धि को यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी बताया है कि अमेरिका में आने वाले पेशेवर वास्तव में उच्च कौशल वाले हों और अमेरिकी श्रमिकों की नौकरी का विकल्प न बनें। अमेरिकी अधिकारियों का तर्क है कि उच्च शुल्क केवल उन कंपनियों और पेशेवरों के लिए बाधा बनेगा जो कम कौशल वाले विदेशी कर्मचारियों का दुरुपयोग करते हैं।
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विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस नीति को लागू किया गया, तो अमेरिका में नई स्टार्टअप और अनुसंधान परियोजनाओं में विदेशी प्रतिभाओं की भागीदारी घट सकती है। इसके विपरीत, भारत और अन्य देशों में उच्च कौशल वाले पेशेवर अपने नवाचार और पेटेंट के लिए बेहतर अवसर तलाश सकते हैं।
इस फैसले से वैश्विक तकनीकी परिदृश्य में बदलाव आने की संभावना है, जहां भारत और अन्य नवोदयशील देशों के शहर तकनीकी नवाचार के नए केंद्र बन सकते हैं।
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