नेपाल की राजनीति में बड़ा उलटफेर हुआ है। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने लगातार बढ़ते प्रदर्शनों और राजनीतिक दबाव के बीच इस्तीफ़ा दे दिया। राजधानी काठमांडू समेत कई शहरों में हो रहे विरोध प्रदर्शनों ने सरकार की स्थिति को कमजोर कर दिया।
ओली ने इस्तीफ़ा देते हुए कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में देश के हित में यही सही कदम है। उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से अपील की कि वे एकजुट होकर नेपाल को स्थिरता की ओर ले जाने का प्रयास करें। साथ ही, उन्होंने सर्वदलीय बैठक बुलाने का आह्वान किया, ताकि आगे की राजनीतिक दिशा तय की जा सके।
इस बीच, सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने संकेत दिया है कि वह सरकार को दिए गए समर्थन को वापस लेने पर विचार कर रही है। पार्टी का कहना है कि ओली सरकार जनता की आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतरी और उसने देश को राजनीतिक अस्थिरता की ओर धकेल दिया।
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विशेषज्ञों का मानना है कि ओली का इस्तीफ़ा नेपाल में एक नई राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दे सकता है। अब सवाल यह है कि क्या नया नेतृत्व स्थिर सरकार दे पाएगा या फिर देश जल्द ही चुनावी प्रक्रिया की ओर बढ़ेगा।
प्रदर्शनकारियों का गुस्सा मुख्य रूप से सरकार के फैसलों और लोकतांत्रिक अधिकारों के दमन के खिलाफ था। ओली सरकार पर यह आरोप भी लगाया गया कि उसने जनता की आवाज़ को अनदेखा किया।
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