असम सरकार ने 1950 के इमिग्रेंट्स (एक्सपल्शन फ्रॉम असम) एक्ट का हवाला देते हुए नागांव जिले के 15 लोगों को 24 घंटे के भीतर भारत छोड़ने का निर्देश दिया है। ये सभी लोग विभिन्न वर्षों में विदेशी न्यायाधिकरणों द्वारा “विदेशी” घोषित किए जा चुके हैं। इनमें कुछ को वर्ष 1990 में और कुछ को हाल के वर्षों में, 2021 तक, विदेशी करार दिया गया था।
नागांव के पुलिस अधीक्षक स्वप्ननील डेका ने बताया कि फिलहाल ये सभी लोग गोलपाड़ा जिले के मटिया स्थित डिटेंशन सेंटर में रखे गए हैं। उन्होंने कहा कि इन लोगों के निर्वासन (डिपोर्टेशन) की प्रक्रिया शुक्रवार को शुरू की जाएगी। प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि यह कार्रवाई कानून के प्रावधानों के तहत की जा रही है और इसमें किसी भी तरह की ढिलाई नहीं बरती जाएगी।
1950 का यह कानून असम में अवैध रूप से रह रहे प्रवासियों को राज्य से बाहर निकालने के लिए बनाया गया था, लेकिन लंबे समय से इसका प्रयोग नहीं किया गया था। अब एक बार फिर इस कानून को लागू करते हुए प्रशासन ने सख्त रुख अपनाया है। अधिकारियों का कहना है कि जिन लोगों को विदेशी घोषित किया जा चुका है, उन्हें भारत में रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
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इस कदम को लेकर राज्य में राजनीतिक और सामाजिक बहस भी तेज हो सकती है। मानवाधिकार संगठनों और कुछ सामाजिक समूहों का कहना है कि ऐसे मामलों में मानवीय पहलुओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। वहीं, प्रशासन का तर्क है कि कानून का पालन कराना उसकी जिम्मेदारी है और न्यायाधिकरणों के आदेशों को लागू करना अनिवार्य है।
असम में अवैध प्रवासन का मुद्दा लंबे समय से संवेदनशील रहा है और यह कार्रवाई इसी दिशा में सरकार की सख्ती को दर्शाती है। आने वाले दिनों में इस तरह की और कार्रवाइयों की संभावना से इनकार नहीं किया जा रहा है।
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