गुजरात हाईकोर्ट ने बुधवार (29 अक्टूबर 2025) को अहमदाबाद के एक व्यक्ति की हैबियस कॉर्पस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मां के पास बच्चे का होना “अवैध हिरासत” नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने पिता को सलाह दी कि यदि वह अपने बेटे की अभिरक्षा या मुलाकात के अधिकार चाहते हैं, तो उन्हें पारिवारिक अदालत में उचित याचिका दायर करनी चाहिए।
मामला अहमदाबाद के एक विवाहित व्यक्ति का है, जिसकी पत्नी हाल ही में अपने पांच वर्षीय बेटे के साथ घर छोड़कर चली गई थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि पत्नी ने उसके बेटे को “ग़ैरक़ानूनी रूप से अपने साथ ले जाकर” उससे संपर्क तोड़ दिया है। उसने अदालत से अनुरोध किया था कि पत्नी को निर्देश दिया जाए कि वह बच्चे को अदालत में पेश करे।
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि पुलिस रिपोर्ट के अनुसार पिता का अपने बेटे से गहरा भावनात्मक संबंध है, लेकिन पत्नी ने मुलाकात या बातचीत से इनकार कर दिया।
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मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति आनंद जोशी की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि जब तक मां बच्चे की देखभाल कर रही है और उसका कल्याण सुनिश्चित है, तब तक इसे “अवैध हिरासत” नहीं कहा जा सकता। अदालत ने कहा कि “मां का अपने नाबालिग बच्चे के साथ रहना स्वाभाविक और वैधानिक अधिकार है, और इस पर हैबियस कॉर्पस याचिका लागू नहीं होती।”
कोर्ट ने पिता से कहा कि वे बच्चे की अभिरक्षा या मुलाकात के अधिकार के लिए गांधीनगर फैमिली कोर्ट या संबंधित न्यायिक मंच से संपर्क करें।
 
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