भारत और बांग्लादेश के बीच 2015 में किए गए ऐतिहासिक भूमि सीमा समझौते (Land Boundary Agreement) ने लगभग सात दशकों तक बेनामी महसूस करने वाले करीब 15,000 लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान की। इस समझौते के तहत भारत और बांग्लादेश के बीच एंकेलेव (enclaves) का आदान-प्रदान हुआ।
इस समझौते से प्रभावित लोगों ने दशकों तक जो असुरक्षा और पहचान की कमी महसूस की थी, उसका अंत हुआ। अब उन्हें नागरिक अधिकार प्राप्त हुए हैं, जैसे कि मतदान का अधिकार, सरकारी योजनाओं का लाभ और आधिकारिक पहचान। कई लोगों ने कहा कि भारतीय नागरिकता मिलने के बाद उनकी आशाएं और आकांक्षाएं पूरी हुई हैं।
समझौते के 10 वर्ष पूरे होने पर कुछ लोग आज भी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। सीमावर्ती इलाकों में बुनियादी ढांचे की कमी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित पहुंच, और रोजगार के अवसरों की कमी जैसी समस्याएँ अभी भी बनी हुई हैं। सरकार और स्थानीय प्रशासन ने इन क्षेत्रों में सुधार के लिए कई पहलें की हैं, लेकिन लंबी अवधि में और प्रयासों की आवश्यकता है।
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इस ऐतिहासिक समझौते ने न केवल लोगों की जीवन स्थितियों में सुधार किया, बल्कि भारत-बांग्लादेश के बीच संबंधों को भी मजबूती प्रदान की। विशेषज्ञों का मानना है कि भूमि सीमा समझौते जैसी पहलें क्षेत्रीय स्थिरता और पारस्परिक सहयोग के लिए महत्वपूर्ण हैं।
10 वर्षों के अनुभव से यह स्पष्ट हुआ है कि नागरिकता के साथ आने वाले अधिकार लोगों के जीवन में वास्तविक बदलाव ला सकते हैं, लेकिन सामाजिक और आर्थिक सुधारों की निरंतर आवश्यकता बनी रहती है।
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