इज़राइल सरकार ने भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में रहने वाले बनेई मेनाशे समुदाय के सभी शेष 5,800 यहूदियों को आने वाले पाँच वर्षों में इज़राइल लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। यह समुदाय लंबे समय से स्वयं को इस्राइल के ‘मेनाशे’ कबीले का वंशज बताता आया है, जिसे करीब 2,700 वर्ष पहले असीरियों द्वारा निर्वासित किया गया था।
यह प्रस्ताव 23 नवंबर 2025 को मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत किया गया, जिसे इज़राइल की यहूदी एजेंसी ने “ऐतिहासिक और व्यापक पहल” बताया। इस योजना के तहत 2030 तक लगभग 5,800 सदस्यों को इज़राइल लाया जाएगा, जिनमें से 1,200 को 2026 के लिए पहले ही मंजूरी दी जा चुकी है।
इस बार यहूदी एजेंसी पहली बार पूरे ‘प्री-इमिग्रेशन प्रोसेस’ का नेतृत्व करेगी — पात्रता साक्षात्कार, मुख्य रब्बी कार्यालय एवं कन्वर्ज़न अथॉरिटी के साथ समन्वय, उड़ानों की व्यवस्था और नए प्रवासियों के इज़राइल में बसने की प्रक्रिया। इस पूरी योजना पर 90 मिलियन शेकेल (लगभग 27 मिलियन डॉलर) खर्च होने का अनुमान है, जिसमें उड़ान, आवास, हिब्रू भाषा प्रशिक्षण और अन्य लाभ शामिल हैं।
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इमिग्रेशन एवं इंटीग्रेशन मंत्री ओफिर सोफर ने यह योजना कैबिनेट में प्रस्तुत की। जल्द ही रब्बियों का एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल भारत भेजा जाएगा, जो लगभग 3,000 लोगों का साक्षात्कार करेगा जिनके प्रथम-स्तरीय रिश्तेदार पहले से इज़राइल में रह रहे हैं।
पहले चरण में समुदाय के अधिकांश लोग वेस्ट बैंक में बसाए गए थे, लेकिन हाल के वर्षों में उन्हें उत्तरी इज़राइल के विभिन्न शहरों में बसाया जा रहा है, विशेष रूप से नॉफ़ हागालिल में। आने वाले वर्षों में आने वाले प्रवासियों को भी वहीं बसाया जाएगा।
बनेई मेनाशे की यहूदी पहचान पर लंबे समय तक बहस होती रही, लेकिन 2005 में सेफ़ार्डी समुदाय के तत्कालीन मुख्य रब्बी श्लोमो अमर ने उन्हें “इज़राइल के वंशज” मानते हुए उनके प्रवास का मार्ग प्रशस्त किया। वर्तमान में लगभग 2,500 सदस्य पहले से ही इज़राइल में रह रहे हैं और उनमें से कई युवा इज़राइल रक्षा बलों में सेवा कर रहे हैं।
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