भारतीय रुपये में सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 8 पैसे की गिरावट दर्ज की गई और यह 88.18 के नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ। विदेशी मुद्रा (फॉरेक्स) बाजार के कारोबारियों का कहना है कि रुपये में यह कमजोरी मुख्य रूप से वैश्विक अनिश्चितताओं और अमेरिकी व्यापार शुल्क (टैरिफ) से जुड़ी चिंताओं के कारण आई है।
विशेषज्ञों के अनुसार, रुपये के कारोबार पर दबाव बना हुआ है क्योंकि अमेरिकी डॉलर की मजबूती और वैश्विक बाजारों में अनिश्चित माहौल के चलते जोखिम नीचे की ओर झुके हुए हैं। निवेशक फिलहाल सुरक्षित विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं पर दबाव बढ़ रहा है।
फॉरेक्स डीलरों का कहना है कि विदेशी पूंजी के बहिर्वाह और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मजबूत संकेतों ने रुपये की कमजोरी को और बढ़ाया है। इसके अलावा, कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की बिकवाली ने भी रुपये को कमजोर करने में योगदान दिया।
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विश्लेषकों का मानना है कि यदि अमेरिकी व्यापार नीतियों में और सख्ती आती है, तो रुपये में और गिरावट देखने को मिल सकती है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के हस्तक्षेप की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा रहा, हालांकि केंद्रीय बैंक आमतौर पर बाजार को केवल अत्यधिक उतार-चढ़ाव से स्थिर करने के लिए दखल देता है।
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