महाराष्ट्र में हिरासत में मौत की जांच से जुड़े दिशा-निर्देशों की कमी को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट में एक अहम याचिका दायर की गई है। याचिका में राज्य के गृह मंत्री देवेंद्र फडणवीस को तलब करने की मांग की गई है, ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि बार-बार के न्यायालयीय निर्देशों के बावजूद राज्य अब तक हिरासत में मौत की जांच के लिए बाध्यकारी नियम क्यों नहीं बना पाया है।
यह याचिका विजयाबाई व्यंकट सूर्यवंशी द्वारा दायर की गई है, जिनके बेटे सोमनाथ सूर्यवंशी की मृत्यु 15 दिसंबर 2024 को परभणी जिला कारागार में हुई थी। याचिका में आरोप लगाया गया है कि बीएनएसएस (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता), 2023 की धारा 196 के तहत मजिस्ट्रियल जांच होने के बावजूद राज्य में एक “लगातार कानूनी शून्य” बना हुआ है।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रकाश आंबेडकर, हितेंद्र गांधी, एम.बी. संदंशिव और सिद्धार्थ वाई. शिंदे पेश हुए। उनका कहना है कि BNSS हिरासत में मौत या संदिग्ध मौत के मामलों में मजिस्ट्रियल जांच का प्रावधान तो बताता है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से नहीं बताता कि यदि जांच में मौत “अप्राकृतिक या हत्या” जैसी पाई जाती है, तो आगे के अनिवार्य कदम क्या हों।
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याचिका में मांग की गई है कि ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करना, संबंधित अधिकारियों को तत्काल निलंबित करना, और जांच को न्यायालय की निगरानी में संचालित करना कानूनन अनिवार्य होना चाहिए। याचिकाकर्ता का तर्क है कि बिना स्पष्ट दिशानिर्देशों के, हिरासत में मौत के मामलों में जवाबदेही सुनिश्चित नहीं हो पाती और पीड़ित परिवार न्याय से वंचित रह जाते हैं।
बॉम्बे हाई कोर्ट इस मामले पर जल्द सुनवाई कर सकता है, जो राज्य में भविष्य की हिरासत मौत मामलों की जांच प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।
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